मंगलवार, 22 मार्च 2016

मुहब्बत का खेल (०५ नवम्बर २०१२)

लोगों का दिखावा कुछ इस कदर बढ़ा है
दिखने में ही अब तो उन्हें मजा आ रहा है
नज़रों से नज़रें अब तो हटती नहीं हैं
मुहब्बत का तूफ़ान दिल में उठे जा रहा है  I

मुहब्बत भी सड़कों पर दिखने लगी है
गलियों में चर्चा आम हो रहा है
जिसे देखो वो मुहब्बत करे जा रहा है
हर कोई मुहब्बते अंजाम से बेफिक्र हो रहा है I

दुश्मन भी मुहब्बत के करने वाले हुए हैं
सरे आम मुहब्बत का दिखावा हो रहा है
अंजामें मुहब्बत को रुसवा करके
हर कोई यहाँ तो बदनाम हो रहा है I

शाने मुहब्बत करता रहा
शान से वो तो जीता रहा
बेशर्मी का चश्मा लगता रहा
जाने कहाँ वो  बढता रहा I

कुछ लोगों ने इसको पेसा बनाया
और दिलों से खेले जा रहा है
छोड़कर उनको मजधार में ही देखो
कितनी शान से वो तो जिए जा रहा है I

आँखों में सपने सजाकर उनके
दिलों का सौदा किये जा रहा है
कभी वो इनसे कभी वो उनसे
मुहब्बत का खेल, खेले जा रहा है I

कमलेश संजीदा उर्फ़ कमलेश कुमार गौतम 


भविष्य का इंसान (११ फरवरी २०१४ )

भविष्य  भी लोगों का बदलने लगा
हर कोई हाई टेक होने लगा
चलते ही चलते बतलाने लगा
बिन पूछे ही आगे बढ़ने लगा I

माइक्रो चिप ही माइंड में लगवाने लगा
सारा का सारा डेटा भरवाने लगा
चलता फिरता ही गूगल होने लगा
हर किसी के माइंड में सर्च इंजिन होने लगा I

इशारों पर ही कार का इंजिन चलने लगा
चलता फिरता ही इंसान रोबोट लगने लगा
भावनाओं का नाता अब कटने लगा
इंसान ही मशीन अब होने लगा I

दवाईयों के दम पर चलने लगा
बिमारियों  को ठीक वो मकरने लगा
इंजीनियर डाक्टर खुद होने लगा
मल्टी पर्सनालिटी दिखने लगा I
  
इंटरनेट सर्फिंग भी आंखों पर करने लगा
माइंड का चिप ही हर जगह काम करने लगा
आंखों के रेटिना पर डिस्प्ले होने लगा
सभी कुछ आसान सा होने लगा I

इंसान भी मशीनों सा स्कैनिंग करने लगा
और गाड़ियों की तरह  ही रिपेरिंग करने लगा
ऑपरेशन भी रोबोट से करने लगा
शरीर के स्फेयर पार्ट्स बदलवाने लगा I

हर बीमारी का इलाज माइंड में आने लगा
उसका इलाज खुद ही करने लगा
बूढ़ा भी जवान अब होने लगा
जवानी में ही जिंदगी अब काटने लगा I

   कमलेश संजीदा उर्फ़ कमलेश कुमार गौतम